जय गो माता
|| ॐ करणी ||
जय गुरुदाता
धेनु दर्शन फाउंडेशन
धेनु दर्शन - गौ संवर्धन
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गौ-संवर्धन की आवश्यकता:-
गौ-संवर्धन अपने देशवासियों के लिए ही नहीं विश्ववासियों के लिए भी हर दृष्टि से आवश्यक है। संवर्धित गो की सेवा स्वार्थी समाज कुछ अतिरिक्त करता हैं। किसी भी कारण से हो, गो सेवा होने पर गो माता सुखी रहती हैं।
गोमाता के सुखी होने से विश्व सुखी होता हैं।
किन्तु आजकल देखा जा रहा है, कि गोधन घट भी रहा है और सेवा और संवर्धन के अभाव में दुर्बल भी बन रहा है। जिस देश में गौ धन ही सर्वोत्तम धन माना जाता था, जहाँ के सम्बन्ध में दूध की नदियाँ बहने की लोकोक्ति थी, उसे बूंद-बूंद दूध के लिए क्यों तरसना पड़ रहा है, क्यों विदेशी गो समान दिखने वाले रोगदाता पशुओं के दूध पावडर का आयात भारत को करना पड़ रहा है? गौमाताओ के गोवंश की संख्या में घटोत्तरी और गोवंश की दुर्बलता का क्रम क्यों चल पड़ा….?
इसका प्रमुख कारण है—
1. गोमाता के प्रति पूज्य भाव की न्यूनता,
वेद पुराण उपनिषद आदि धर्म ग्रंथ मार्गदर्शन देते रहे है कि गो हमारी माँ है,गो से ही सकल सृष्टि का संचालन है गो बिना संसार सत्वगुण रहित हो जाता है परिणाम तह भारत का सम्पूर्ण गो वंश सुखी संतुष्ट था कृपा दायी,सुख दायी ,दुग्ध प्रदाता था ऋषि जीवन शैली और कृषि का मूल आधार था विकृत संस्कृति के आगमन से अति भौतिक वादिता ने गो के दिव्य स्वरूप को भुला दिया परिणाम मानव मन गो को साधारण कम उपयोगी पशु मानने लग गया फल असंवर्धित गो वंश सड़को पर विचरण कर रहा है,पुनः गो महिमा को स्थापित कर गो माता के संवर्धन हेतु सभी सनातन मानव जाती को आगे आने के लिये प्रेरित करना ही प्रारंभिक उपाय है
2. परंपरागत गो विज्ञान का अनादर
भारत के हर घर के बड़े बुजुर्ग,माता बहने,किशोर युवक परंपरा प्राप्त गो विज्ञान को जानते समझते थे और उसी रीति नीति से गो सेवा करते थे जिस से गो वंश संवर्धित,हृष्ट पुष्ट और सहज उपयोगी था आधुनिक शिक्षा ने यह सब भुला दिया परिणाम स्वरूप परम्परागत गो विज्ञान का अनादर होने से असंवर्धित गो वंस बढ़ा और मानव ने उसे कम उपयोगी मान कर अपने घर से निकाल दिया
पुनः परंपरागत गोविज्ञान और संवर्धन पद्धति प्रशिक्षण देकर गो वश को उचित आदर,आवास,आहार,ओषधि,आनन्द,और आजादी प्रदान करवा सकते है
3. गौ-दुग्ध की उपेक्षा
जन साधारण ने इस समझ को तो भुला दिया है कि गाय का दूध पोषक तत्वों की दृष्टि से लगभग उतना ही उपयोगी होता है, जितना कि मां का दूध।अथवा कई मामलों में तो उससे भी उत्तम होता हैं ।
गो दुग्ध में वे सभी रसायन पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं, जिनकी मनुष्य शरीर, मन और बुद्धि अत्यधिक आवश्यकता रहती है। गो दुग्ध की सात्विकता भी सर्वविदित है। गाय माता को देव संज्ञा दी गई है कई जगह देवताओं की भी देवता बताया गया है।
[ वराह पुराण २०४-२०]
इदमेवापरम् चैव चित्रगुप्तस्य भाषितम् ।
सर्वदेवमया देव्यः सर्ववेदमयास्तथा।।
अर्थ :-( सूत जी महाराज शौनकादिक ऋषियों को कथा सुना रहे हैं)
(भगवान वाराह, माता पृथ्वी को कथा सुना रहे हैं)
चित्रगुप्त जी कहते हैं कि यह गौमाता स्वरूप देवीयाँ सर्वदेवमय और सर्ववदमय है और उसे माता कहा गया है।
[महाभारत]
भुक्त्वा तृणानि शुष्कानि पीत्वा तोयं
जलाशयात् ।
दुग्धं ददति लोकेभ्यो गावो विश्वस्य मातरः॥
– (महाभारत की कथा वैशम्पायन जी, परीक्षित के पुत्र जनमेञ्जय को सुना रहे हैं) गौ माता सूखी घास खाती है, जलाशय का सामान्य जल पीती है और हमें अमृतमय दूध देती है। गाय माता सारे विश्व की माता है।
इसका कारण है गो माता की दिव्य प्रकृति। गौमाता के सम्पर्क में आने पर, उनकी सेवा करने पर तथा गौ-रस सेवन करने पर जो लाभ मिलते हैं, वे ऐसे नहीं हैं, जिनकी उपेक्षा की जा सके। सर्वसाधारण के मन मस्तिस्क पर यह भ्रम गहराई तक जम गया है कि भैंस के दूध की तुलना में गाय का दूध कमजोर होता है। पतला देखकर ही उसका महत्व गिरा दिया जाता है और उपयोग लेने में आना-कानी की जाती है। जो खरीदते हैं वे भी अपेक्षाकृत कम मूल्य देते हैं। ऐसी दशा में गो पालन करने वाले गोप परिवार का आर्थिक लाभ कम हो जाता है और वह भी गाय माता की उपेक्षा करने लगता है, गो पालन में हिचकता है, पालता भी है तो उसे घटिया दाना-चारा देता है। फलस्वरूप जितना दूध मिल सकता था, उसमें भी कमी आ जाती है। पालने वाले और दूध खरीदने वाले दोनों की ही दृष्टि में महत्व घट जाने के कारण गौओं की संख्या घटती जारही है। उपेक्षित रहने के कारण वे दूध भी कम देती हैं। दूध खरीदने वाले नाक-भौंह सिकोड़ते हैं और लेते भी हैं तो कम कीमत देते हैं। यही है गौ-वंश के ह्रास का एक बड़ा कारण हे जिसका समाधान कुछ इस प्रकार किया जा सकता है ।
गो दुग्ध की महिमा वर्धनकर गौ संवर्धन करना
समुन्नत देशों में गौ-पालन ही अधिक होता है। गौ-वध बन्द करने के लिए प्रयत्न तो करना ही है। इस दिशा में प्रयास किया किया ही जाना चाहिए, पर साथ ही यह भी ध्यान रखना होगा कि आर्थिक लालच के युग में गोमाता उपयोगिता और अर्थ लाभ बढ़ाने पर सामान्य गो पालक बंधुओं की ओर से भी गोमाता को सहज और चिरस्थाई सुरक्षा मिल सकती है। इस प्रयोजन की पूर्ति के लिए सर्व साधारण के मन में घुसा हुआ यह भ्रम निकालना चाहिए कि भैंस के दूध की तुलना में, गाय माता का दूध घटिया होता है। इसलिए उसका दाम भी कम दिया जाना चाहिए। यदि गाढे पन की तुलना में दिव्यता,सात्विकता,गुणवत्ता और स्वाद विषय समझाने वाला व्यापक प्रचार हो, तो लोग अपनी भूल सुधार कर सकते हैं, गायमाता के दूध को प्रमुखता दे सकते हैं। उसका उचित दाम देने में भी आना-कानी नहीं करगे । यदि गाय माता के दूध की मात्रा अधिक हो, उसके दाम भी भैंस के दूध जितने ही मिलें या अधिक मिले तो जो गौ-पालन आज घाटे का सौदा समझा जाता है,वही गो पालने वालों के लिए आकर्षक बन सकता है। मात्रा अधिक होने और लाभ की मात्रा समुचित रहने पर पालने वालों का उत्साह बढ़ेगा। वे इस प्रयोजन के लिए पूंजी भी लगावेंगे और परिश्रम भी करेंगे। जब उपेक्षा हटेगी और उपयोगिता बढ़ेगी तो स्वभावतः लोग एक लाभदायक उद्योग की तरह उस हेतु उन्नति के लिए नये प्रयास करेंगे। नस्लें सुधरेंगी। चारे के लिए कुछ खेती सुरक्षित रखी जाने लगेगी। भूमि में अन्न उगाकर जितना कमाया जाता है उससे अधिक चारा उगाकर लाभ कमाया जा सकेगा।गो वंश भी स्वस्थ, मजबूत बनेगा । उनके बच्चे भी मजबूत पैदा होंगे और अधिक लोग रखना पसंद करेगे । ऐसी दशा में हर समझदार आदमी गौ-संवर्धन पर, गौ-रस सेवन पर अधिक ध्यान देगा। गायें संख्या में कम रह जाने और कम दूध देने के कारण उन्हें घरेलू उपयोग के लिए ही काम में लाया जाता है। बड़े पैमाने पर उनके दूध के उत्पादन की यदि व्यवस्था बनाई जा सके तो जो गोमाता का दूध खरीदना चाहते हैं उन्हें भी उपयुक्त स्थान पर उपयुक्त मात्रा में वह मिल भी सकेगा। गौ-संवर्धन के लिए सर्व साधारण के मन में गौ-दुग्ध की उपयोगिता और महत्ता जमाने की आवश्यकता है, ताकि वे उसी को महत्ता दें और पतलेपन के कारण उचित मूल्य देने में आना-कानी न करें। फिर गो माता का कसाईघर पहुंचना भी बन्द हो जाएगा।
गौ संवर्धन कैसे हो...?
गायों के संरक्षण के लिए एकमात्र उपाय यह है कि पहले हमें पुनः गौ-धन की उपयोगिता स्थापित करनी होगी. वर्तमान परिदृश्य में हम गौ-धन संरक्षण के लिए पुर्णतः गौशाला पर निर्भर हो गये हैं. गौशाला एक तरह से गो वंश के लिए सहारा भर है, यदि उसे हम पूर्णकालिक गौ-संरक्षण व्यवस्था की तरह अपनायेंगे, तो गौ-वंश रक्षा का हमारा उद्देश्य शायद फलीभूत होगा. गौशाला की व्यवस्था निराश्रित गो वंश के लिए बहुत पहले से उपलब्ध रही है, लेकिन पूर्णकालिक व्यवस्था के लिए जरूरी है कि किसान , गोपाल ,धर्मात्मा जन और श्रेष्ठी जन पुनः अपने घरों में गौ- सेवा गो-पालन प्रारंभ करें.
यांत्रिक खेती नेनर गो वंश को खेतों से बाहर कर दिया है, इस कारण किसान के घरों में गो माता की गोवंश की उपयोगिता नहीं रही. साथ ही देशी गाय की दूध उत्पादन क्षमता कम होने से किसान को उसका रख-रखाव महंगा पड़ने लगा है. खासकर चरनोई ( गो चर)की भूमि खत्म होना भी एक कारण है, जिसकी वजह से किसानों ने गाय माता की जगह दूध के लिए भैंस को अपना लिया है.
एक समय था, जब गांवों में किसानों के घरों में बड़ी संख्या में गो माताए होती थीं और कस्बों के घरों में भी गौ-पालन को महत्व दिया जाता था. शहरीकरण ने धीरे-धीरे कस्बों के घरों से गाय माता को दूर किया और अब यांत्रिक खेती ने गाय माता और नर गो वंश को किसान से भी दूर कर दिया है. कई सालों से यह स्थिति बनी हुई है कि गांव के किसान खुद अपने गौ-वंश को गौशाला में छोड़ कर चले जाते हैं.
गौशालाओं में यह हाल है कि जगह न होने और अत्यधिक गो माताओ के पधार जाने( संख्या वृद्धि)के कारण उनका रख-रखाव कठिन हो गया है, जिससे गोवंश में बीमारियां होने का भय रहता है. सीमित तंगहाल जगह और उस परगोवंश की अधिकता से गौशालाओं में गो माता की मृत्यु दर भी बढ़ रही है.
यदि वास्तव में गौ-वंश की सुरक्षा करनी है, तो कुछ ऐसे उपायों पर विचार किया जाना चाहिए, जिससे कि किसान ,गोपाल,गो भक्त श्रेष्ठी जन पुनः गौ-पालन की ओर उन्मुख हो. इसके लिए गौ-पालक किसानों को प्रति माह गाय माता के लिए कुछ अनुदान दिया जाये और यदि कोई किसान यांत्रिक खेती की जगह बैलों पर निर्भर रहता है, तो ऐसे किसानों को गौशाला की निगरानी और माध्यम से अनुदान या निशुल्क गोमय खाद – परम्परागत बीज प्रदान कराये जाये.
गाय माता के दूध के उपयोग का प्रचार-प्रसार इसमें बहुत सहायक होगा तथा किसानों, गोपालकों को भी गायमाता के दूध से एक नया आय स्रोत दिखने लगेगा, जो खासकर छोटे किसानों को खेती से भी जोड़े रखेगा और गांवों से पलायन भी रुकेगा.
शासकीय योजनाएं
गौ संवर्धन के लिए, गौओं की देखभाल के साथ-साथ, प्रजनन और चिकित्सा का ध्यान रखना होता है… इसके लिए, सरकार कई योजनाएं भी चलाती है।जिनका प्रचार प्रसार आवश्यक है
.आचार्य विद्यासागर गौ संवर्धन योजना,
. मुख्यमंत्री स्वदेशी गौ संवर्धन योजना,
.गौवंश संवर्धन योजना.
गौ संवर्धन के लिए उपाय:
• गौमाताओं को पर्याप्त जगह, भोजन, और चिकित्सा की व्यवस्था देनी चाहिए।
• गौमाताओं को रोगमुक्त रखना चाहिए.
• गौमाताओं के गर्भ धारण हेतु अधिक दूध देने वाले गोवंस से जन्मे स्वस्थ संवर्धित नंदी का ही उपयोग करना चाहिए.
• गौमाताओं के बछड़े/बछडी होने के 60 से 90 दिन बाद गो चिकित्सा पद्दति से गर्भ जांच करा लेनी चाहिए.
• गर्भावस्था के आखिरी दो महीनों में गौमाताओं को विशेष आहार देना चाहिए।
• गौमाताओं के लिए गो धन बीमा कराना चाहिए.
• गौमाताओं के लिए पूरक आहार की सुविधा उपलब्ध कराना चाहिए.
• गौमाताओं के लिए समुचित स्थान होना चाहिए।
संपूर्ण संवर्धन हेतु गो वंस हेतु उचित आदर,आवास,आहार,ओषधि,
आनन्द,और आजादी का प्रबंध आवश्यक हैं
इन बातों को ध्यान में रखते हुए परम पूज्य गुरुदेव भगवान के आदेश पर एवं उनके परम कृपामयी मार्गदर्शन में “धेनु दर्शन फाउंडेशन” की नींव रखी गयी।
भारतीय वेदलक्षणा गोवंश की क्षेत्र अनुसार स्थानीय नस्ल का संवर्धन करना, उत्तम नस्ल के वेदलक्षणा नंदी और बछिया वैदिक और वैज्ञानिक रीति से तैयार करना, वेदलक्षणा गो-दुग्ध की महिमा का विस्तार करना, उत्तम नस्ल के नंदी तैयार कर योग्य गोशाला को उपलब्ध करवाना, समान नस्ल के संवर्धन केंद्र में आपस में नंदी स्थानांतरण की व्यवस्था बनाना….यह “धेनु दर्शन फाउंडेशन” का मूल भाव है।