ब्रह्मचारी श्री धनंजय गोपाल जी

 
1. नाम:- ब्रह्मचारी श्री धनञ्जय गोपाल जी
2. जन्मतिथि:-1 नवम्बर 1989
3. शरीर का पूर्व नाम:- धनञ्जय मोकाशे
4. जन्मभूमि:- रवलगाव, तहसील कर्जत, जिला अहिल्यादेवी नगर, महाराष्ट्र 
5. जीवन की लौकिक शिक्षा:- कक्षा 9वीं तक
6. आध्यात्मिक शिक्षा:- परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान ग्वाल संतश्री गोपालाचार्य स्वामी गोपालानंद जी सरस्वती जी महाराज जी के सानिध्य में गौ-कथा, श्रीमद्भगवत गीताजी, साधन निधि, वेदांत सत्संग का अध्ययन-श्रवण वर्ष 2024 में किया।
 
● सामान्य जीवन से आध्यात्म यात्रा:-
प्राप्त वर्तमान शरीर का जन्म दिनांक 1 नवंबर 1989 में महाराष्ट्र के रवलगाव के सामान्य किसान परिवार में हुआ। 
परिवार की पृष्ठभूमि कृषि की होने के कारण मेरा जीवन बचपन में आध्यात्मिक नहीं रहा। माता-पिता एवं अन्य परिवारजनों द्वारा कृषि कार्य करने में ही रुचि रखने के कारण मेरा रुख लौकिक शिक्षा जगत की तरफ नहीं हुआ और अध्ययन में रुचि न होने के कारण मैं शिक्षा जगत में बहुत लंबी यात्रा नहीं कर पाया। कक्षा 9वीं तक अध्ययन किया। तत्पश्चात् अध्ययन को मध्य में ही त्याग कर मैंने माता-पिता का सहयोग करने के भाव से कृषि कार्य एवं डेयरी का व्यवसाय करना प्रारंभ किया। ईश्वर की अनुपम कृपा से यह कार्य बड़े आनंद से चल रहा था। प्रभु का गुणगान करते-करते समय आगे बढ़ा। 
परंतु महापुरुष कहा करते हैं कि समय सदैव एक जैसा नहीं रहता है, जीवन सुख दु:ख का संगम होता है। वर्ष 2017 में एक ऐसी घटना घटी- दैनिक दिनचर्या का कार्य करते हुए अचानक मेरा हाथ कुट्टी मशीन में चला गया और इस हादसे में मैंने अपना एक हाथ खो दिया। हाथ न रहने के कारण जीवन में कई सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। कृषि कार्य में, डेयरी के व्यवसाय में, बहुत सी समस्याएँ आने लगी। परिणामस्वरूप घर परिवार की शांति भंग होने लगी और दिन-दिन विवाद बढ़ने लगे।
दो वर्ष का समय बहुत ही कठिनाइयों के साथ में व्यतीत हुआ। कठिनाइयों का सामना करते हुए मन सांसारिक मोह माया से हटने लगा। ईश्वर कृपा से मन में लोक कल्याण के भाव जागृत होने लगे और इसके चलते मैनें गांव में वृक्षारोपण, संवर्धन का कार्य प्रारंभ किया और साथ ही साथ टेलीविजन के माध्यम से, यू-ट्यूब के माध्यम से संतों के मुखारविंद से सत्संग श्रवण करने लगा। सत्संग श्रवण करते-करते एक दिन मेरे द्वारा पूर्व जन्म में की गई भगवती गौमाता की सेवा के फलस्वरूप मुझे परम पूज्य श्री सदगुरुदेव भगवान के दर्शन एवं उनके मुखारविंद से भगवती गौमाता जी का सत्संग श्रवण करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। परम पूज्य गुरुदेव भगवान के मुखारविंद से के गौमाता की महिमा श्रवण की, तब पहली बार एहसास हुआ कि वर्तमान समय में गौमाता की सेवा की महती आवश्यकता है। वर्तमान समय में हजारों गौमाताएं कसाइयों के द्वारा काट दी जाती हैं, पॉलीथीन खाकर प्राण त्याग देती हैं, सड़क दुर्घटना का शिकार हो जाती हैं, धर्मपरायण जनता की उपेक्षाओं की शिकार हो रही हैं, 
आहार औषधि और आश्रय हेतु यत्र-तत्र भटकने की लीला कर रही हैं, यह सब देख सुनकर गुरुदेव भगवान की प्रेरणा से जीवन गौ-सेवा की ओर मुडने लगा। मन में ऐसे भाव जागृत हुए की भगवती गौमाता की सेवा में अपना जीवन बिताना चाहिए। गौमाताओं के लिए गोशाला की व्यवस्था करनी चाहिए। दृढ़ संकल्पित होकर के गौ माता की सेवा के भाव से मैं महाराष्ट्र छोड़कर के राजस्थान आया और भगवती गौ माता के सेवा कार्य में लग गया। 6 माह गोशाला में सेवा देने के पश्चात पुनः महाराष्ट्र लौटकर अपने मित्रों का सहयोग लेकर गांव में ही गोशाला प्रारंभ कर पूज्या गौमाता की सेवा करने लगा। भगवती गौमाता को हाथ से चारा जिमाने की सेवा, गौ माता के गोमय को उठाने की सेवा, और जो कार्य भगवान श्री कृष्ण कन्हैया ने स्वयं धरा धाम पर आकर के किया, वही गोचरण का कार्य भगवती गौ माता की और परम पूज्य गुरुदेव भगवान की कृपा से मुझे प्राप्त हुआ। गुरूदेव भगवान के मुखारविंद से श्रवण किया, भगवान श्रीकृष्ण का गोचारण प्रसंग मेरे हृदय में उतर गया और मैंने संकल्प लिया कि जिस प्रकार भगवान श्री कृष्ण कन्हैया नंगे पांव रहकर के गौमाता को चराया करते थे, मैं भी उसी प्रकार नंगे पांव रहकर के भगवती गौ माता को चराने का यह पवित्र कार्य करूंगा। ईश्वर कृपा से सवा वर्ष तक मुझे गौचारण का सौभाग्य प्राप्त हुआ। एक दिन अचानक मन में विचार आया कि जिन गुरुदेव भगवान की प्रेरणा से मेरे जीवन में गौभक्ति का संचार हुआ, ऐसे गुरुदेव भगवान का दर्शन हो जाए, तो जीवन अलौकिक बन जाए। टेलीविजन के माध्यम से ज्ञात हुआ कि श्री गोधाम महातीर्थ पथमेड़ा द्वारा संचालित कामधेनु गौ अभयारण्य, सालरिया, आगर-मालवा, मध्य प्रदेश, में परम पूज्य गुरूदेव भगवान के मुखारविंद से एक वर्षीय वेदलक्षणा गो आराधना महामहोत्सव चल रहा हैं। गुरुदेव भगवान के दर्शन की उत्कंठ अभिलाषा मेरे हृदय में जागृत हुई और मैं इस आयोजन में गुरुदेव भगवान के दर्शन के भाव लेकर के पहुंच गया। गो-कृपा कथा सुनकर सम्पूर्ण जीवन परिवर्तित हो गया, मानो नया जीवन प्राप्त हो गया। हृदय में सहज निष्काम सेवा के भाव उदित हुए और परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान के श्री चरणों में आजीवन गोमाता की निष्काम सेवा हेतू मैंने स्वयम् को समर्पित कर किया।
 
जिम्मेदारियां:-
1. 43 नियमों का पालन करते हुए गो कृपा कथा के माध्यम से गो महिमा का प्रचार करना।
2. गोपाल परिवार संघ के तत्वावधान में चल रहे गो सेवा कार्य प्रकल्पो की व्यवस्था देखना 
 
कार्य सिद्धि हेतु संकल्प:-
1. पैरों में जूते चप्पल नहीं पहनना।
2. गोव्रती प्रसादी का ही प्रयोग करना।
3. पूर्ण व्यसन मुक्त जीवन जीना।
4. गो-सेवा, गो-दर्शन के बाद ही प्रसादी ग्रहण करना।